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My poem in "VAGARTH MAGZINE"

About Magzine:- Vagarth (वागर्थ ) is a Hindi literary magazine published by Bhartiya Bhasha Parishad ( भारतीय भाषा परिषद ) from Kolkata.   ...

#तस्वीरें_बोलती_हैं

   جملات احساسی عاشقانه و بسیار زیبا - بیا تو صفا

तस्वीरों के लिये
कैमरे की जरुरत है उन्हें
जो लमहों को जीना नहीं
बस कैद करना चाहते हैं
कैमरे की जरुरत है किसे
अगर लम्हों को जीकर
सँजो लिया दिल में
खींच गयी तस्वीरें
आँखो के लेन्स से
दिल औ दिमाग पर
जो मिट सकती नहीं
एडिट हो सकती नहीं
जिन्हें फिल्टर की जरुरत नहीं
और
एफबी और स्टेटस की मोहताज नहीं

©vaishali_singhal

#काश ::

  *क्युँकि हर सपना सच नहीं होता











 



 
काश!
एक अनोखा
अद्भुत और चमत्कारी शब्द
समेटे हो जैसे
अपने भीतर विशाल सागर
तेर रही है जिसमें स्वप्नों की नौकाएं
विडम्बना
कितने ही काश
उड़ रहे हैं आकाश
अदृश्य विलुप्त
और
अनगिनत काश! 

©vaishali_singhal


# माँ_::-

मैं कभी बतलाता नहीं, पर अंधेरे से डरता हूँ मैं माँ

तुझे सब है पता, मेरी माँ 💞💞

वो शब्द
जिसके आगे
सब शब्द
निःशब्द हैं
वो है माँ
ब्याँ नहीं किया जा सकता
जिसे चंद वाक्यों में
वो हैं माँ
केवल तस्वीरों से व्यक्त नहीं किया जा सकता
जिसका प्यार
वो हैं माँ
जिसका हर दिन
हमारे लिये हैं
उसके लिये
केवल एक दिन निकाले
ये तो अन्याय हैं
क्यूँ ना रोज ही थोड़ा समय निकाले
जिसका हर समय हमारे लिये हैं ।


©vaishali_singhal

Some painting time...

THINKING_  WAy of Living.



©vaishali_singhal

#Yarana


💖💖💖

Image may contain: text that says 'अगर... डाल ना पाऊ मैं कोई स्टेटस ताम ये मत समझना यारों लिए मेरी यारीं में कोई कमी है अगर... डाल पाऊ कोई फ़ोटो सप यारों के लिए तुम मेरी फ्रेंडलिस्ट में नही अगर... कर ना पाऊ तुम यारों को विश मत समझना तुम्हारी फ़िक्र नही एक दिन मझ क्या बात करते हो यारों तुमसे ही तो जिन्दगी की महफ़िल सजी हैं ©vaishali_singhal sha inghal'


©vaishali_singhal



रहस्य !!!

एक_नहीं_अनेक_


यहाँ सब हैं एक रहस्य
पेड़ो की पत्तियों में
फूलों के परागो में
सागर की लहरों में
नदी के बहाव में
जंगल की मिट्टी में
पहाड़ो की ऊंचाई में
सब हैं एक रहस्य
और सबसे बड़ा रहस्य
इंसान होने में
दिखने में सब एक जैसे
सबके वही दो आंख
दो बाह
दो पैर
फिर भी सब हैं भिन्न
क्यूँकि
मानव स्वयं हैं एक रहस्य

©vaishali_singhal

जयंती_प्रेमचंद

प्रेमचंद की 140वीं जयंती पर शत शत नमन 💐💐


Image may contain: 1 person, text that says 'Anmd/Vacman.in कविता सच्ची भावनाओं का चित्र हैं और सच्ची भावनाऐं चाहे वे दुख की हो या सुख की, उसी समय सम्पन्न होती हैं जब हम दुख या सुख का अनुभव करतें हैं! मुंशी प्रेमचंद'


साहित्य के जो प्रेमी है
कथा के जो सम्राट है
उपन्यास के जो बादशाह है
मील के जो पत्थर है
नाम जिनका प्रेमचंद हैं
करते है जो राज़ दिलो पर
कहते है जो किस्से कहानियाँ
गांधी के जो आज्ञाकारी
आदर्शवादी और यथार्थवादी
हैं उनकी जयंती आज


©vaishali_singhal

मन_भाव_ पियानो

 Image may contain: text that says 'मन का पियानी भाव बजाते मन का पियानो भाव जगाते तन का पियानो भाव ही भाव बजाते भाव ही भाव जगाते कभी खुशी के भाव कभी दुंख के भाव ये भाव नहीं पियानो है मेरे मन का पियानो मेरे तन मन का पियानो जो बज तो रहा है बजे ही जा रहा है परन्तु सुनने वाला........'


©vaishali_singhal




BEing AlonE

 loneliness_sometimes_happiness

Image may contain: nature, text that says 'Being alone feels like I m in the sky Being alone feels like I m in the deep water Being alone feels like I m in the air Being alone feels like I m the everything Exist in the world'


©vaishali_singhal

कभी न थकने वाले पाँव

 Image may contain: 1 person, text that says 'चले जा रहे हैं बस चले जा रहे हैं, वे पाँव जिनकी मंजिल का ठिकाना नहीं इल्म नहीं उन्हें इतना भी कि पहुँच भी पाएंगे किसी मंजिल तक तक या मिलेगी बस अतिम मंजिल ना जाने कैसे, कब और कहाँ से आये थे कौन हैं वे लोग बेबसी और लाचारी बन गया उनका पर्याय रचयिता I| वैशाली सिंघल'



©vaishali_singhal

मजदूर या मजबूर


चले जा रहे है
बस चले जा रहे हैं
वो पाँव
जिनका ठिकाना
हो गया हैं अब अज्ञात
इल्म नहीं उन्हें इतना भी
कि
पहुँच भी पाएंगे अपनी मंजिल तक
या मिलेगी दुसरी ही मंजिल (मौत)
ना जाने
कैसे कहाँ से आये थे
कि
बेबसी और लाचारी
ही रह गयी है
उनकी पहचान अब

©vaishali_singhal

# नीति_राज_की_...

राजनीति : राष्ट्र सेवा या व्यवसाय ? | | ALL RIGHTS

सियासते आऐंगी
सियासते जाऐंगी
पर नहीं जाएगी
तो सिर्फ...
राजनीति
है इतिहास गवाह इसका
सत्ता का है एक ही धर्म
अर्जित करना सिर्फ अर्थ (रुपया)
ना परवाह थी
ना है
ना होगी
ये राजनीति है साहब
लोकनीति कहा होगी 


©vaishali_singhal

#कोरोना

 


कोरोना कोरोना
से
तुम क्यूँ डरोना
ये तुच्छ जीवाणु
तुम विशाल मानव
फिर भी
डरोना
छोड़ोना छोड़ोना
है ये डर
किस बात का
छोड़ोना
नमस्कार करो ना
धीरज धरो ना
विचलित मत होओ ना
खुश रहो ना
बाहर मत निकलो ना
मम्मी को सताओ ना
पापा को हँसाओ ना
प्रेम से रहो ना
मस्त रहो ना
छोड़ोना छोड़ोना
डरना भी अब
छोड़ोना
है वक्त ये दुर्लभ
फिर कभी ना आएगा
प्रेम भरे क्षण बिताओ ना
फ़ेसबुक टिकटोक भूल जाओ ना
कोरोना कोरोना को
भूल जाओ ना

©vaishali_singhal

वक्त

 Image may contain: ‎one or more people, ocean and outdoor, ‎text that says '‎पिघल रहा है वक्त देखो छोड़ता है निशां कैसे कैसे -Vaishali Singhal בR‎'‎‎


©vaishali_singhal

Image may contain: text that says 'पिघलती है रात जैसे जैसे शामियाना बुझता जाता है जैसे जैसे सुरज उगता है जैसे जैसे अंधकार मिटता जाता है वैसे वैसे -Vaishali Singhal'


©vaishali_singhal

# राम-राज्य आजकल

 

#थाली

(संदर्भ - कुछ लोग भूख से मर रहे है और दुसरी तरफ कुछ लोग एशो आराम से पकवान खा रहे हैं। कुछ तो मदद करना हमारा भी फर्ज हैं।)



मना रहे है जश्न हम किस बात का खा रहे हैं पकवान हम किस खुशी में हर तरफ है छाया मौत का साया फिर भी शरीक है हम अपने जश्न में हो गए इतने निर्लज्ज कि सरकार पर मड़ दी सारी जिम्मेदारी नही दिखती अपनी कोई जिम्मेदारी देशभक्ति ही हैं दिखानी तो कुछ तो दान करो हो गए हम इतने स्वार्थी कि भरी थाल होने पर भी कहते हैं और भरो और भरो रहे मग्न हम अपने ऐशो आराम में फर्क हमें क्या पड़ता हैं कोई मरे तो मरे हम तो हैं बचे हुए मर चुके है मिट चुके है लाखों लोग पर फर्क हमें क्या पड़ता है आपना चूल्हा तो जल ही रहा है सोशल डिस्टांसिंग के नाम पर क्या हमारी भावनाओं की भी हो गयी है डिस्टांसिंग कहते थे लोग जो खुद को गांधीवादी क्या दिखा सकेंगे अब अपना गांधीवाद वो महापुरुष जिसने एक फटे हाल गरीब को देखकर त्याग दिये थे वस्त्र भुखमरी देखकर छोड़ दिया था अन्न दिखा सकेंगे क्या अब अपना गांधीवाद मैं नही कहती कि हम भी बने गांधी अरे हमारी औकात ही क्या ऐसे महापुरुष के आगे पर चाहूंगी बस इतना कि दुसरे की थाली यदि हो खाली तो ना भरो अनावश्यक अपनी थाली नही हूँ मैं आप लोगो से भिन्न हूँ मैं भी आप ही के जैसी बनाये हैं मैनें भी बहुत समोसे ओर रसगुल्ले पर उस रस में मुझे दिखते हैं अब किसी गरीब के अश्रु जिसका रूदन मेरी आत्मा को रौंद डालता है धिक्कारती हैं मेरी आत्मा मुझे कि कितनी स्वार्थी हूँ मैं सोचा हमेशा बस अपना ही अपना अरे कभी तो देखी होती दुसरे की भी थाली जो आज है खाली अब कुछ लोग सोचेंगे क्या फर्क पड़ता है इन सबसे पर ये भी सच है कि बूंद बूंद से ही तो सागर बनता है अब कुछ लोग पूछेंगे मुझसे कि कैसे बिताए फिर लोकडाउन अरे भाई! तुम जीवित हो स्वस्थ हो अपने परिवार के साथ हो क्या नहीं है इतना काफी क्या बन गए हैं हम भी ध्रतराष्ट्र और गांधारी जो नहीं देखती किसी गरीब की लाचारी।

©vaishali_singhal

#धर्म :-

    


छोडो भी यार

क्यों करते हो हिन्दू मुसलमान
क्या नहीं दिखता तुम्हें इन्सान
छोडो भी यार
क्यों करते हो मन्दिर मस्जिद
क्या नहीं दिखता तुम्हे इन्सान में भगवान
है ये राजनीति
उनकी
जो बने फिरते हैं
धर्मरक्षक
वास्तव मे
क्या जानते भी हैं वे
धर्म का मर्म
फस गया उनके चंगुल में इन्सान
जो सदा करते हैं हिन्दू मुसलमान
देखो जीत गए वो
जो सेका करते धर्म के नाम पर अपनी रोटी
हारी है तो
सिर्फ इंसानियत
फेलाऔ तुम भी नफरत
बन जाओ दोस्त से दुश्मन
क्योंकि धर्म बड़ा है अब
चाहे हिन्दू हो या मुसलमान
दोहराया जाएगा इतिहास फिर
जब लडेगा धर्म
आग लगकर इतनी कहा जाओगे
खुद को ही राख पाओगे
समझते हो खुद को मानव
तो हैवान और इन्सान
का फर्क समझो
तर्कशील बनो
और खुद को बदलो
नचा रहे हैं वो तुम्हे
कठपुतलियों कि तरह
और नाच रहे हो तुम
धर्म के नाम पर
क्या हो सकता हैं
आतंक का कोई धर्म
हो सकता हैं कोई धर्म
तो सिर्फ इंसानियत
कहा गया भारत
कहा गयी भारतीयता
खो गयी अनेकता की एकता
रह गया कुछ
तो सिर्फ हिन्दू मुसलमान
हो जाए यदि एक सभी
हो जाय यदि सबका धर्म सबकी जाति
भारत
सिर्फ भारतीयता
तब क्या एसी जन्नत मिलेगी स्वर्ग में भी
©vaishali_singhal