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My poem in "VAGARTH MAGZINE"

About Magzine:- Vagarth (वागर्थ ) is a Hindi literary magazine published by Bhartiya Bhasha Parishad ( भारतीय भाषा परिषद ) from Kolkata.   ...

#थाली

(संदर्भ - कुछ लोग भूख से मर रहे है और दुसरी तरफ कुछ लोग एशो आराम से पकवान खा रहे हैं। कुछ तो मदद करना हमारा भी फर्ज हैं।)



मना रहे है जश्न हम किस बात का खा रहे हैं पकवान हम किस खुशी में हर तरफ है छाया मौत का साया फिर भी शरीक है हम अपने जश्न में हो गए इतने निर्लज्ज कि सरकार पर मड़ दी सारी जिम्मेदारी नही दिखती अपनी कोई जिम्मेदारी देशभक्ति ही हैं दिखानी तो कुछ तो दान करो हो गए हम इतने स्वार्थी कि भरी थाल होने पर भी कहते हैं और भरो और भरो रहे मग्न हम अपने ऐशो आराम में फर्क हमें क्या पड़ता हैं कोई मरे तो मरे हम तो हैं बचे हुए मर चुके है मिट चुके है लाखों लोग पर फर्क हमें क्या पड़ता है आपना चूल्हा तो जल ही रहा है सोशल डिस्टांसिंग के नाम पर क्या हमारी भावनाओं की भी हो गयी है डिस्टांसिंग कहते थे लोग जो खुद को गांधीवादी क्या दिखा सकेंगे अब अपना गांधीवाद वो महापुरुष जिसने एक फटे हाल गरीब को देखकर त्याग दिये थे वस्त्र भुखमरी देखकर छोड़ दिया था अन्न दिखा सकेंगे क्या अब अपना गांधीवाद मैं नही कहती कि हम भी बने गांधी अरे हमारी औकात ही क्या ऐसे महापुरुष के आगे पर चाहूंगी बस इतना कि दुसरे की थाली यदि हो खाली तो ना भरो अनावश्यक अपनी थाली नही हूँ मैं आप लोगो से भिन्न हूँ मैं भी आप ही के जैसी बनाये हैं मैनें भी बहुत समोसे ओर रसगुल्ले पर उस रस में मुझे दिखते हैं अब किसी गरीब के अश्रु जिसका रूदन मेरी आत्मा को रौंद डालता है धिक्कारती हैं मेरी आत्मा मुझे कि कितनी स्वार्थी हूँ मैं सोचा हमेशा बस अपना ही अपना अरे कभी तो देखी होती दुसरे की भी थाली जो आज है खाली अब कुछ लोग सोचेंगे क्या फर्क पड़ता है इन सबसे पर ये भी सच है कि बूंद बूंद से ही तो सागर बनता है अब कुछ लोग पूछेंगे मुझसे कि कैसे बिताए फिर लोकडाउन अरे भाई! तुम जीवित हो स्वस्थ हो अपने परिवार के साथ हो क्या नहीं है इतना काफी क्या बन गए हैं हम भी ध्रतराष्ट्र और गांधारी जो नहीं देखती किसी गरीब की लाचारी।

©vaishali_singhal

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